सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल उठाया है कि आखिरकार लॉ एंट्रेस एग्जाम अंग्रेजी माध्यम में ही क्यों आयोजित होता है।साथ ही कहा कि क्यों नही परीक्षा क्षेत्रीय भाषाओं में होनी चाहिए?#exam #lawexam pic.twitter.com/UugLAW0lj0
— Legal Advisory (@LegalAdvisory07) April 16, 2021
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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल उठाया है कि आखिरकार लॉ एंट्रेस एग्जाम अंग्रेजी माध्यम में ही क्यों आयोजित होता है।साथ ही कहा कि क्यों नही परीक्षा क्षेत्रीय भाषाओं में होनी चाहिए?
न्यायमूर्ती चंद्रचूड़ ने कहा कि लॉ कॉलेजों में दाखिले की प्रक्रिया से ही भेदभाव शुरू हो जाता है।
अधिकतर टॉप लॉ स्कूल,जो पांच वर्षीय डिग्री कोर्स कराते हैं,उनकी प्रवेश परीक्षा सिर्फ अंग्रेजी में होती है,जबकि अंग्रेजी परीक्षा का एक अलग हिस्सा भी होता है।
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अपनी बात को बढ़ाते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,यह कहा जा सकता है कि विशिष्ट छात्रों को उच्च स्तरीय अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा नसीब होती है।
वहीं वंचित समुदाय के जिन छात्रों की शिक्षा राष्ट्रीय या क्षेत्रीय भाषाओं में हुई हो और जो न्यायिक सेवा में जाना चाहते हो,वे इन संस्थानों में पढ़ने से महरूम रह जाते हैं।
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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने यह बातें वर्चुअल माध्यम से आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही। जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि यदि छात्र इस परीक्षा में पास भी हो जाते हैं तो उन्हें लॉ स्कूल का चयन करने में भी परेशानी होती है।उन्हें लॉ कॉलेज चुनने में समझौता करना होता है।
उन्होंने यह भी कहा कि इस वजह से दलित,आदिवासी और हाशिये पर रह रहे समुदाय के छात्र अक्सर खुद को शिक्षा के स्तर में पिछड़ा हुआ महसूस करते हैं।
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इतना ही नही, वाद विवाद प्रतियोगिता, इंटर्नशिप आदि गतिविधियों में भी पिछड़ जाते हैं। चंद्रचूड़ ने अपनी बात को समाप्त करते हुए कहा कि टॉप लॉ कॉलेज खर्चीले होते है।
इन संस्थानों में कर्ज आधारित छात्रवृति भी पर्याप्त नही होती है। 18 वर्ष की आयु में परीक्षा देने से ही भेदभाव शुरू हो जाता है।
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